वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने 12 अक्टूबर 2020 को अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए कई घोषणाएं की थीं। इन घोषणाओं का असर भले ही कम हो, लेकिन इन्होंने कुछ सकारात्मक संकेत दिए हैं। इन्होंने बताया कि सरकार मानती है कि कोविड की वजह से आर्थिक तनाव है और वह उपभोग बढ़ाने के लिए नई योजनाएं लाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए सरकार की तारीफ करनी चाहिए, उसे प्रोत्साहित करना चाहिए।
हालांकि, इसी बीच एक नया विवाद खड़ा हुआ, जिससे ये घोषणाएं कहीं दब गईं। यह विवाद तनिष्क ज्वेलरी के विज्ञापन से जुड़ा था, जिसमें एक हिन्दू दुल्हन को मुस्लिम परिवार में दिखाया गया था। यह राष्ट्रीय भाईचारे को प्रदर्शित करता विज्ञापन था। हालांकि दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने मुद्दे को ‘लव जिहाद’ बताकर खूब उछाला।
उन्होंने तनिष्क को भला-बुरा कहा। विडंबना यह है कि इन्होंने कहा कि अगर लड़का हिन्दू और लड़की मुस्लिम होती तो ठीक होता। इससे कट्टरता व पितृसत्ता का मिश्रण एकसाथ दिखा। कंपनी ने विज्ञापन हटा लिया। हालांकि यह गैरजरूरी था, लेकिन शायद कंपनी को लगा कि उसके महंगे शोरूम्स की सुरक्षा ज्यादा जरूरी थी।
मुद्दा यह है कि तनिष्क विवाद कई दिन तक ट्रेंड में रहा, जिससे अर्थव्यवस्था के लिए की गईं शानदार घोषणाएं दब गईं। ऐसा पहले भी हुआ है। कट्टर-दक्षिणपंथी जहां भाजपा के प्रति अत्यधिक वफादार हैं, वहीं वे सरकार की विरासत बर्बाद कर रहे हैं। एक ओर हम सरकार से आर्थिक सुधार के कदमों की मांग करते हैं, वहीं जब वे ऐसा करते हैं तो उनपर ध्यान नहीं देते। अक्सर खबरों की हेडलाइंस में कट्टर-दक्षिणपंथी एजेंडों का दबदबा रहता है, जिनमें मूलत: शामिल हैं, अ) मुस्लिमों को किसी तरह बुरा या दोषी या किसी समस्या का कारण बताना या ब) किसी सख्त, रूढ़ीवादी पुराने हिन्दू नैतिक कोड की बात, जिसे भारतीय समाज पर लागू करने की जरूरत है या स) भारत में स्वाभाविक हिन्दू अधिकार का भाव।
बेशक ये मुद्दे टीवी को आर्थिक घोषणाओं की तुलना में ज्यादा मनोरंजक और सनसनीखेज बनाते हैं। हालांकि, अगर ऐसा ही होता रहा तो मौजूदा सरकार की विरासत के मिटने का जोखिम बढ़ जाएगा। फिर इस सरकार को किसलिए याद रखा जाएगा? भारत को आर्थिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए या कट्टर दक्षिणपंथी एजेंडा को बढ़ाने के लिए?
अगर आप पिछले एक साल में सरकार के प्रयास देखेंगे तो निश्चित तौर पर मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने की मंशा दिखेगी। हालांकि हर हफ्ते एक कट्टर-दक्षिणपंथी एजेंडा आता है और वास्तविक मुद्दों से ध्यान हट जाता है, विदेश में भारत की छवि खराब होती है, बिजनेस पर असर होता है और सरकार की विरासत खराब होती है।
मुद्दा यह है कि सरकार इसे कैसे ठीक करे? यही कट्टर-दक्षिणपंथी सरकार के सबसे जुनूनी समर्थक भी हैं। ये भाजपा के आधार का हिस्सा हैं। भाजपा और कट्टर-दक्षिणपंथ के कुछ मुद्दे समान भी हैं। जैसे धारा 370 हटना और राम मंदिर। हालांकि इन मुद्दों को करोड़ों मध्य-दक्षिणपंथियों का भी समर्थन था। समस्या यह है कि जबसे सरकार ने इन मुद्दों पर काम किया है, कट्टर दक्षिपंथ और कट्टर हो रहा है। वे बेलगाम हो रहे हैं।
वे ऐसी चीजें चाहते हैं जो भारत के विकास की संभावनाओं के लिए घातक हैं। वे किसी अर्ध-काल्पनिक ऐतिहासिक भारतीय हिन्दू राष्ट्र की वापसी चाहते हैं, जो व्यावहारिक रूप से असंभव है, जो कलह को बढ़ाएगी और जिसके घातक आर्थिक दुष्परिणाम होंगे। मुद्दा दक्षिणपंथी एजेंडा नहीं है। स्पष्ट रूप से भारतीयों को दक्षिणपंथी नीतियों से समस्या नहीं है और इसीलिए उन्होंने इस सरकार को दो बार चुना है। समस्या कट्टर दक्षिणपंथ का और कट्टर होना है। ज्यादातर भारतीय कट्टर-दक्षिणपंथी नहीं हैं। वे अच्छी अर्थव्यवस्था चाहते हैं। ज्यादातर भारतीय हिन्दू, मुस्लिमों से लगातार लड़ना भी नहीं चाहते हैं।
सरकार के लिए चुनौती यह है कि अगर वह अपनी विरासत बचाना चाहती है तो उसे कट्टर दक्षिणपंथ पर लगाम कसनी होगी। यह मुश्किल है। वे शादी में नशे में धुत अंकल की तरह हैं, जो हंगामा करते हैं लेकिन उन्हें निकाल नहीं सकते क्योंकि शादी पर उन्होंने भी खर्च किया है। सरकार यही उम्मीद कर सकती है कि वह कट्टर-दक्षिणपंथियों को समझा पाए कि भारत अमीर बनकर ही महान बन सकता है, जिसके लिए भाईचारा चाहिए। वह पुन: परिभाषित कर सकती है कि महान भारत का मतलब क्या है। उदाहरण के लिए ऐतिहासिक समाज की ओर लौटने की बजाय प्रति व्यक्ति जीडीपी को दोगुना करना।
ईमानदारी से कहें तो मौजूदा सरकार ने प्रत्यक्ष रूप से कट्टर दक्षिणपंथियों को नहीं उकसाया। सरकार की नीति अति दक्षिणपंथी तत्वों को नजरअंदाज करने की रही है। मसलन सरकार के किसी वरिष्ठ नेता ने तनिष्क मामले पर टिप्पणी नहीं की। हालांकि सरकार को कट्टर-दक्षिणपंथियों को सही दिशा देने के लिए सक्रिय कदम उठाने होंगे। कट्टर वामपंथ की ही तरह, कट्टर दक्षिणपंथ भी मौजूद है। दोनों ही शासन को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
सत्ता में मौजूद किसी भी पार्टी की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने आधार को नाराज किए बिना, अतिवादी तत्वों को नियंत्रित रखे। भाजपा को ऐसा करने की जरूरत है, ताकि अच्छा काम करने के बावजूद उसकी विरासत खराब न हो। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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