अमेरिकी दवा कंपनियों फाइजर और मॉडर्ना ने कोरोना वैक्सीन के लिए अमेरिका के साथ ही यूरोपीय संघ में भी इमरजेंसी अप्रूवल मांगा है। इस पर जल्द ही फैसला हो सकता है। इसी तरह दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) के CEO अदार पूनावाला ने भी कहा है कि वे भी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन 'कोवीशील्ड' के लिए भारत में इमरजेंसी अप्रूवल मांगने वाले हैं। आइए जानते हैं कि क्या है इमरजेंसी अप्रूवल? यह किन परिस्थितियों में दिया जाता है?

इमरजेंसी यूज ऑथोराइजेशन (EUA) क्या है?

  • दवाओं की ही तरह वैक्सीन को भी हर देश में रेगुलेटरी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। डायग्नोस्टिक टेस्ट और मेडिकल उपकरणों को भी। भारत में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) यह अप्रूवल देता है।
  • यह अप्रूवल वैक्सीन और दवाओं के केस में उसकी सेफ्टी और इफेक्टिवनेस के आधार पर दिए जाते हैं। इसका बेस बनता है जानवरों और इंसानों पर हुए ट्रायल्स का डेटा। और तो और ट्रायल्स के हर स्टेज पर भी रेगुलेटर से अप्रूवल की जरूरत पड़ती है।
  • यह एक लंबी प्रक्रिया है। उसमें ही पता चलता है कि कोई दवा या वैक्सीन सेफ और इफेक्टिव है या नहीं। वैक्सीन के इतिहास को देखें, तो अब तक गलसुआ या कण्ठमाला के रोग (मम्प्स) का वैक्सीन ही सबसे तेज अप्रूव हुआ था। 1960 के दशक में इसके अप्रूवल में साढ़े चार साल लगे थे।
  • आज हालात ऐसे है कि इतने समय तक कोरोना वैक्सीन का इंतजार नहीं किया जा सकता। इस वजह से दुनियाभर में ड्रग रेगुलेटर्स दवाओं, वैक्सीन और अन्य मेडिकल प्रोडक्ट्स को इमरजेंसी अप्रूवल दे रहे हैं। इसके लिए वैक्सीन के सेफ और इफेक्टिव होने के पर्याप्त सबूत चाहिए।
  • जब सभी जरूरी ट्रायल्स पूरे हो जाएंगे, तभी उसके डेटा के एनालिसिस के आधार पर अंतिम अप्रूवल मिलेगा। इस बीच EUA मिलने पर ही लोगों पर उस दवा या वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह भी तब दिया जाता है, जब मार्केट में उसके विकल्प नहीं होते।

EUA कब दिया जाता है?

  • अमेरिका के ड्रग रेगुलेटर- फूड एंड ड्रग रेगुलेटर (FDA) के मुताबिक, EUA तभी दिया जा सकता है जब वैक्सीन या दवा के संभावित खतरों के मुकाबले उससे होने वाला फायदा ज्यादा हो। प्रैक्टिकली देखें, तो इसका मतलब है कि फेज-3 ट्रायल्स का एफिकेसी डेटा आने के बाद ही EUA पर विचार हो सकता है। फेज-1 और फेज-2 के डेटा के आधार पर EUA नहीं दिया जा सकता।
  • FDA ने कोविड-19 के लिए तय किया है कि अगर फेज-3 एफिकेसी डेटा में वैक्सीन 50% से ज्यादा इफेक्टिव रहती है, तो ही उसे इमरजेंसी अप्रूवल दिया जाएगा। यह डेटा 3,000 से ज्यादा वॉलेंटियर्स का होना चाहिए। वैक्सीन के सभी डोज देने के एक महीने बाद तक कम से कम एक महीने तक कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं होना चाहिए।

भारत में इमरजेंसी अप्रूवल को लेकर क्या नियम है?

  • भारत की टॉप वैक्सीन साइंटिस्ट और वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कांग के मुताबिक, पिछले साल ही भारत के नए क्लिनिकल ट्रायल्स के नियम बने हैं। इसमें रेगुलेटर को आपात परिस्थितियों में बिना ट्रायल के भी दवा या वैक्सीन को इमरजेंसी यूज के लिए मंजूरी देने का अधिकार दिया है।
  • डॉ. कांग के मुताबिक, इमरजेंसी यूज की परमिशन देने के बाद भी मॉनिटरिंग क्लिनिकल ट्रायल्स जैसी ही होती है। हर पेशेंट के डिटेल्स जरूरी होते हैं। उन पर नजर रखी जाती है। जिस कंपनी को अपने प्रोडक्ट के लिए कहीं और लाइसेंस मिला है, उसे प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल ट्रायल्स का पूरा डेटा रेगुलेटर को सबमिट करना होता है।
  • जब कंपनी इमरजेंसी रिस्ट्रिक्टेड यूज की परमिशन मांगती है, तो रेगुलेटर के स्तर पर दो स्टेज में वह प्रोसेस होती है। सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी उस एप्लिकेशन पर विचार करती है। उसके अप्रूवल के बाद मामला अपेक्स कमेटी के पास जाता है। इस कमेटी में स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े विभागों के सचिव भी होते हैं।

इमरजेंसी अप्रूवल में क्या खतरा रहता है?

  • यह अलग-अलग दवा और वैक्सीन पर निर्भर करता है। हो सकता है कि आगे चलकर इमरजेंसी अप्रूवल हटा दिया जाए और पूरा प्रोजेक्ट ही बंद कर दिया जाए। कोरोना के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन और रेमडेसिविर के साथ ऐसा ही हुआ। WHO ने भी पहले जिन दवाओं को कोरोना में कारगर बताया, बाद में उन्हें वापस ले लिया।
  • इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महाराष्ट्र चैप्टर के प्रेसिडेंट डॉ. अविनाश भोंडवे का कहना है कि इमरजेंसी अप्रूवल अधपके खाने जैसा है। बेहतर होगा कि जब खाना पूरी तरह पक जाए, तभी उसे खाया जाए। दुर्घटना से देर भली ही होती है।
  • FDA के मुताबिक, लोगों को ऐसी दवा, वैक्सीन या मेडिकल प्रोडक्ट के बारे में बताना आवश्यक है कि उसे इमरजेंसी अप्रूवल मिला है और अब तक उसकी सेफ्टी और इफेक्टिवनेस पूरी तरह से साबित नहीं हुई है। इसी तरह की प्रक्रिया का पालन भारत समेत सभी देशों में किया जा रहा है।


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