उनकी मौजूदगी से मैं घबराई रहती थी
हैरान... शब्दों से परे दुखी... तहस-नहस सी फीलिंग... अब भी विश्वास नहीं होता कि चिंटूजी हमारे बीच नहीं हैं। पहली फिल्म 'कयामत से कयामत' के बाद से ही मैंने उनके साथ काम करना शुरू कर दिया था। उनके साथ पहली फिल्म 'घर घर की कहानी' थी। उनकी मौजूदगी से मैं घबराई रहती थी। दुआ करती थी कि उनके सामने कहीं अपने डायलॉग्स न भूल जाऊं। बेवकूफ न लगूं। वे हमेशा फ्रेंडली रहे, पर जरा डिटैच्ड भी रहते थे। वे रोजाना दो शिफ्टों में काम करते थे। अलग-अलग स्टूडियो में शूट करने जाते थे, मगर मजाल जो कभी कहीं लेट हो जाएं।
एक कार्यक्रम के दौरान जूही चावला और ऋषि कपूर।
एक कार्यक्रम के दौरान जूही चावला और ऋषि कपूर।
मेकअप साफ कर कहते अब मैं रेडी हूं
उनकी अनूठी आदतें थीं। वे सुबह 10 बजे सेट पर पहुंच जाते और किसी पेड़ की छाया में बैठ जाते। शशि दादा उनका मेकअप करते। उनके गोरे चेहरे को गुलाबी बनाते जाते। तब तक एक ट्रांजिस्टर रेडियो भी बजता रहता। जब शशि दादा का मेकअप हो जाता तो चिंटूजी उठते। चेहरे पर हाथ फेरते और सारा मेकअप हाथों से रगड़ डालते। फिर कंघी से बालों को ठीक करते और कहते, हां अब मैं रेडी हूं। मैं उन्हें देख हंसती रह जाती। वे शशि दादा का पूरा एफर्ट खराब कर चुके होते थे।
चिंटू जी एक लंबा सा आइना भी साथ रखते। हर शॉट से पहले दादा उस आइने को पकड़े रहते। चिंटू जी मजाकिया लहजे में कहा करते, 'मैं सिर्फ खुद को देख नहीं रहा। मैं बैकग्राउंड भी चेक कर रहा कि वह ठीक है या नहीं।'
सेट पर लाते थे काका स्क्रैबल बोर्ड
खैर वक्त बीतता गया और हमने साथ में कई फिल्में कीं। मसलन, 'बोल राधा बोल', 'ईना मीना डीका', 'साजन का घर'। इन फिल्मों तक मैं भी जरा कॉन्फिडेंट हो चुकी थी। चिंटू जी सेट पर लूडो की तरह काका स्क्रैबल बोर्ड लाया करते थे। ब्रेक में हम वह खेला करते थे। आमतौर पर वे ही उसमें जीतते थे, पर मैं भी आसानी से हार नहीं मानती थी।
बच्चों को साथ लाने वाले फैन्स पर होती थी खीझ
चिंटू जी को अपने उन फैंस पर बड़ी खीझ होती थी, जो बच्चों के साथ सेट पर आ जाते और फोटो खिंचवाने की फरमाइश करने लगते। उनका तर्क होता था कि बेचारे बच्चों को क्या मालूम कि हम कौन हैं? क्या कर रहे हैं? ऐसे में चिंटू जी ने एक तरीका निकाला हुआ था। कोई फैन जैसे ही फोटो की गुजारिश करता, चिंटूजी जोर जोर से अमेरिकी संविधान का एक प्रावधान बोलने लग जाते। इसके बाद बेचारा वह फैन सिर पर पांव रख कर भाग जाता था और हम हंसते रह जाते थे।
बोल राधा बोल फिल्म के एक सीन की शूटिंग के दौरान ऋषि और जूही।
बोल राधा बोल फिल्म के एक सीन की शूटिंग के दौरान ऋषि और जूही।
हाल के बरसों में वे लेट नाइट शूट करने लगे थे
चिंटू जी शुरू के दिनों में तो रात 10 बजे तक शूट कर निकल जाते थे, मगर हाल के बरसों में वे लेट नाइट शूट भी करने लगे थे। मिसाल के तौर पर जोया अख्तर की डेब्यू फिल्म ‘लक बाय चांस’ में हमने साथ काम किया था। उस समय तो कई बार रात के 11, 12 यहां तक कि 2 बज जाते थे। चिंटू जी फिर भी लगातार काम करते रह जाते। तब तक बाकी कास्ट थक जाते, पर ऋषि जी उसी एनर्जी के साथ काम करते रह जाते।
अपने लोगों से कुछ डांटते हुए अंदाज में बात करते थे
उनकी एक और खूबी थी। वे जिन्हें अपना मानने लग जाते, उन्हें हल्का सा डांटते हुए अंदाज में बातें करते। उस टोन में उनका ‘क्या हाल है’ पूछना भी बड़ा कमाल का लगता था। एक पॉइंट के बाद तो तो मुझे हंसी ही आने लगती थी।'
'मैं उन्हें हमेशा बहुत मिस करती रहूंगी'
लॉकडाउन के बाद मुझे किसी ने चिंटू जी की फिल्म के गाने की मीम भेजी थी कि लॉकडाउन तो बिल्कुल वही है कि 'अंदर से कोई बाहर न जा सके, बाहर से कोई अंदर न जा सके'। वह मैंने चिंटूजी को फॉरवर्ड की थी। कुछ ही दिनों बाद उनके इंतकाल की खबर आ गई। बहुत दुखदायी था वह। मैं उन्हें हमेशा बहुत मिस करती रहूंगी।
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